ऱक्षाबन्धन क्या है..
रक्षाबंधन एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसे भारत के कई हिस्सों में बड़े धूम - धाम से मनाया जाता है। इसके अलावा विदेशो में भी जहाँ हिन्दू धर्म के लोग रहते है वहाँ भी मनाया जाता है।
रक्षा बंधन भारतीय संस्कृति और परंपराओं के अनुसार प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहन भाई के हाथ में राखी बांधती है और दीर्घ आयु के लिए प्रार्थना करती है। परंपराओं के अनुसार आज भी गांव में कुल का पुरोहित रक्षा बंधन के दिन रक्षा सूत्र बांध कर त्योहार मनाया जाता है।
भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित रक्षाबंधन का त्योहार इस बार 26 अगस्त 2018 रविवार को मनाया जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस त्योहार की शुरुआत सगे भाई-बहनों ने नहीं की थी। रक्षाबंधन कब शुरू हुआ, इसे लेकर कोई तारीख स्पष्ट नहीं है। वैसे, माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत सतयुग में हुई थी। इस त्योहार से संबंधित कई कथाएं पुराणों में मौजूद हैं।
ऱक्षाबन्धन का महत्व...
इस पर्व का बहुत महत्त्व हैं, जैसा की आप जानते है की ये त्यौहार भाई बहन के बीच मनाया जाता हैं। इस दिन बहन भाई की कलाई पर एक धागा बांधती है। जिसे रक्षासूत्र कहा जाता है और भाई अपनी बहन को जीवन भर उसकी रक्षा करने का बचन देते है। इस दिन भाई - बहन दोनों एक साथ पूजा करते है ।
रक्षाबन्धन कैसे मनाया जाता है
ऱक्षाबन्धन मानाने का तरीका बिलकुल सरल है। इस दिन बहन जल्दी उठकर स्नान करती है। स्नान करने के बाद नए कपडे पहनती है और जो राखी भाई के लिए खरीदी गई है उसको पूजा की थाली मे रख ले।
इसके बाद अपने भाई को सामने बैठाकर उसके तिलक लगाए और उसकी कलाई पर राखी बांधे। फिर आरती उतारे। आरती के बाद अपने भाई की पसंदीदा मिठाई उसे खिलाये और अंत में भाई से उपहार ले ।
रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है ..
रक्षाबंधन मनाने से सम्बंधित कई कथाये है
1) द्वापर युग में द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की कलाई में साड़ी के पल्लू का एक अंश बांधा था और वही उनकी कौरवों से लाज बचाने का माध्यम बना था। कहते हैं कि उसी घटना के प्रतीक स्वरूप तब से अब तक रक्षाबंधन मनाया जाता है। रक्षाबंधन का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी है। इसी दिन अमरनाथ में शिवलिंग अपना पूर्ण रूप धारण करते हैं तथा सफेद कबूतर के जोड़े के भी दर्शन होते हैं जो पुरातन काल से इसी गुफा में निवास करते हैं। कहते हैं कि जब भगवान शिव ने पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे तो वह दो कबूतर ही वहां पर थे जो की अमर कथा के प्रभाव से अमर हो गए और आज भी वह श्रावणी पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन के दिन वहां दर्शन देते हैं।
2) राखी की एक अन्य कथा है कि पांडवों को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा योगदान था। महाभारत युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि हे कान्हा, मैं कैसे सभी संकटों से पार पा सकता हूं? मुझे कोई उपाय बतलाएं। तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधें। इससे उनकी विजय सुनिश्चित होगी। युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और विजयी बने। यह घटना भी सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर ही घटित हुई मानी जाती है। तब से इस दिन पवित्र रक्षासूत्र बांधा जाता है। इसलिए सैनिकों को इसदिन राखी बांधी जाती है।
3) भविष्य पुराण में एक कथा है कि वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी। इस रक्षासूत्र ने देवराज की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। यह घटना भी सतयुग में हुई थी।
4) सिकंदर पूरे विश्व को फतह करने निकला और भारत आ पहुंचा। यहां उसका सामना भारतीय राजा पुरु से हुआ। राजा पुरु बहुत वीर और बलशाली राजा थे, उन्होंने युद्ध में सिकंदर को धूल चटा दी। इसी दौरान सिकंदर की पत्नी को भारतीय त्योहार रक्षाबंधन के बारे में पता चला। तब उन्होंने अपने पति सिकंदर की जान बख्शने के लिए राजा पुरु को राखी भेजी। पुरु आश्चर्य में पड़ गए, लेकिन राखी के धागों का सम्मान करते हुए उन्होंने युद्ध के दौरान जब सिकंदर पर वार करने के लिए अपना हाथ उठाया तो राखी देखकर ठिठक गए और बाद में बंदी बना लिए गए। दूसरी ओर बंदी बने पुरु की कलाई में राखी को देखकर सिकंदर ने भी अपना बड़ा दिल दिखाया और पुरु को उनका राज्य वापस कर दिया।
5) असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था. राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे. भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया. अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें.
भगवान वामन ने ऐसा ही किया. इस तरह देवताओं की चिंता खत्म हो गई. वहीं भगवान राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया. बलि की इच्छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा. भगवान विष्णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्मी चिंतित हो गए. अपने पति भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी. बदले में भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया. उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी और मान्यता है कि तभी से रक्षाबंधन मनाया जाने लगा.
6) एक प्रसंग यह भी है कि मेवाड़ की रानी कर्णावती को यह पता चला कि उनके राज्य पर आक्रमण होने वाला है। उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजी और याचना की कि वह उनके राज्य की रक्षा करें। मुगल सम्राट होने पर भी हुमायूं ने कर्णावती की भावनाओं का सम्मान किया और मेवाड़ पहुंच गए। इसके बाद उन्होंने कर्णावती की तरफ से बहादुरशाह के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
जिन भाइयों की अपनी बहनें नहीं होती वह मुंहबोली बहनों से राखी बंधवाते हैं। इस दिन के लिए देशभर से सीमा पर तैनात जवानों को भी राखियां भेजी जाती हैं। ये कहानियां कितनी सही हैं इस बारे में तो कोई तर्क नहीं दिया जा सकता पर हां, यह बात जरूर है कि यह दिन भाई-बहन के प्यार में नवीनता लेकर आता है।
साल 2018 में ऱक्षाबन्धन..
मान्यताओं के अनुसार रक्षाबंधन के दिन अपराह्न यानी कि दोपहर में राखी बांधनी चाहिए. अगर अपराह्न का समय उपलब्ध न हो तो प्रदोष काल में राखी बांधना उचित रहता है. भद्र काल के दौरान राखी बांधना अशुभ माना जाता है. यहां पर हम आपको इस साल राखी बांधने के सही समय के बारे में बता रहे हैं.
राखी बांधने का समय: सुबह 5 बजकर 59 मिनट से शाम 5 बजकर 25 मिनट तक (26 अगस्त 2018)
अपराह्न मुहूर्त: दोपहर 01 बजकर 39 मिनट से शाम 4 बजकर 12 मिनट तक (26 अगस्त 2018)
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: दोपहर 03 बजकर 16 मिनट (25 अगस्त 2018)
पूर्णिमा तिथि समाप्त: शाम 05 बजकर 25 मिनट (26 अगस्त 2018)
Very nice information... Thanks❤🌹 for share... Rakshabandhan kyu manaya jata hai
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