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Tuesday, September 4, 2018

शिक्षक दिवस क्या है इसे क्यों मानाने है?/Why do celebrate Teacher's Day?

शिक्षक दिवस क्या है इसे क्यों मानाने है?
टीचर्स-डे कब मनाया जाता।
टीचर्स-डे मानाने का महत्त्व।
Why do celebrate Teacher's Day?
हर साल की तरह इस बार भी 5 सितम्बर को टीचर-डे मनाया जाएगा। टीचर्स-डे आने से हफ्तों पहले से ही स्कूलों में इस दिन की तैयारिया शुरू हो जाती है। स्कूल में बच्चो और टीचरो के बीच एक अलग माहौल बन जाता है। बच्चे कई दिन पहले से ही इसकी तैयारिया शुरू कर देते है। 
विधार्थी अपने प्रियः गुरु के प्रति मनोभावो को प्रदर्शित करते है। उन्हें गिफ्ट देते है, और  भाषण देकर अपने प्रियः गुरु के प्रति अपने विचारो को व्यक्त करते है।

वास्तव में शिक्षक दिवस छात्र और शिक्षक के बीच एक महत्ब्पूर्ण गरिमा प्रदान करता है।
गुरु-शिष्य परंमपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है।
भारत में प्राचीन काल से ही गुरु व शिक्षक परम्परा चली आ रही है। जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं और  सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

माता-पिता भी है एक शिक्षक का रूप  
जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता। क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। कहा जाता है कि जीवन के सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं।
जब हम इस दुनिया में आते है तो माँ ही वो सबसे पहली शिक्षिका  होती जो अपने करूँन भाव से हमारे अंदर कुछ सीखने की कला विकसित करती है और इसके बाद से ही माता-पिता माध्यम से सीखने की प्रक्रिया चलती रहती है। वो हमे अच्छे बुरे रास्तो का ज्ञान देते है और हमेशा हमारी जरुरतो का ख्याल रखते है ।कभी हमारा साथ नहीं छोड़ते है। इसलिए दोस्तों माता-पिता का भी एक शिक्षक के रूप में सबसे बड़ा योगदान है। जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। अतः हम एक अच्छे जीवन के लिए अपने माता-पिता के आभारी है और एक अच्छे मार्गदर्शन के लिए शिक्षक के आभारी है। 
एक महान देश को महान बनाने के लिए माता-पिता और शिक्षक ही जिम्मेदार होते है। इसलिए दोस्तों शिक्षक दिवस हमें अपने माता-पिता के साथ भी मानना चाहिये ।

शिक्षक दिवस कब मनाया जाता है ?
हर साल 5 सितम्बर, पूरे भारत में शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। वास्तव में, 5 सितम्बर, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिवस है, जो महान विद्वान और शिक्षक थे। अपने बाद के जीवन में वह गणतंत्र भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति बने।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे। वे एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे। उन्हें अध्यापन से गहरा प्रेम था। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे। इस दिन समस्त देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।



शिक्षकों का छात्रों के प्रति योगदान  

शिक्षक अपने छात्रों को ध्यानपूर्वक और ईमानदारी से अपने बच्चो के जैसे शिक्षा प्रदान करते हैं। यह एक दम सही कहा गया है कि शिक्षक का स्थान माता-पिता से भी बढ़ कर होता है। माता-पिता बच्चों को जन्म देते हैं और शिक्षक उन्हें सही ढांचे में डाल कर उनका भविष्य उज्जवल बनाते हैं।

हमें कभी भी अपने शिक्षकों को नहीं भूलना चाहिए। हमें उन्हें हमेशा सम्मान उर प्रेम देना चाहिए। हमारे माता-पिता हमें प्यार और हमारा अच्छे से देखभाल करते हैं और शिक्षक हमें सफलता के रास्ते पर भेजने की हर के कोशिस करते हैं।

वे हमें हमारे जीवन में शिक्षा के महत्व और ज़रुरत को समझाते हैं। वे हर एक विद्यार्थी के लिए प्रेरणादायक स्त्रोत होते हैं और उनके अनमोल विचार हम सभी को आगे बढ़न के लिए प्रेरित करते हैं। चलो दोस्तों, साथ मिलकर आज हम अपने सभी माननीय शिक्षकगणों को उनके इस महान कार्य के लिए आभार व्यक्त करे और उनसे आशीर्वाद ले कि उनके निर्देश और सलाह से हमें सफलता की अनंत ऊंचाई प्राप्त हो सके।

वर्तमान में शिक्षको की समीक्षा  
आज तमाम शिक्षक अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो गुरु-शिष्य की परंपरा कहीं न कहीं कलंकित हो रही है। आए दिन शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों एवं विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार की खबरें सुनने को मिलती हैं।
इसे देखकर हमारी संस्कृति की इस अमूल्य गुरु-शिष्य परंपरा पर प्रश्नचिह्न नजर आने लगता है। विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों का ही दायित्व है कि वे इस महान परंपरा को बेहतर ढंग से समझें और एक अच्छे समाज के निर्माण में अपना सहयोग प्रदान करें।

शिक्षाको का देश के चरित्र निर्माण में महत्व  
इसमें कोई संदेह  नहीं है की आने वाली पीढ़ी को एक शिक्षक अच्छी शिक्षा देखर उनको देश के विकास की भागीदारी के लिए तैयार करता है ।
देश में जितने भी राजनेता है, डॉक्टर, इंजीनियर, कलाकार, व्यापारी इन सब को बनाने का श्रेह एक गुरु को ही जाता है। 
इसलिए देश के हर व्यक्ति का ये श्रेह बनता है की शिक्षकों को एक योग्य स्थान मिले और उनकी उन्नति के लिए भी सरकार को विशेष कदम उठाने चाहिए है।
वास्तब में एक शिक्षक ही है जो देश के चरित्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाते हैं जितनी  भूमिका शिक्षक की होती है उतनी किसी और की नहीं ।

में अपनी तरफ से विश्व के सभी शिक्षको को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुबकामनाएं देता हूँ। 

Saturday, August 25, 2018

रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है (WHY RAKSHA BANDHAN IS CELEBRATED IN HINDI)


ऱक्षाबन्धन क्या है..
रक्षाबंधन एक महत्वपूर्ण  पर्व  है जिसे भारत के कई हिस्सों में बड़े  धूम - धाम  से मनाया जाता है।  इसके अलावा  विदेशो  में भी जहाँ हिन्दू धर्म के लोग रहते  है वहाँ भी मनाया जाता है। 
रक्षा बंधन भारतीय संस्कृति और परंपराओं के अनुसार  प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बहन भाई के हाथ में राखी बांधती है और दीर्घ आयु के लिए प्रार्थना करती है। परंपराओं के अनुसार आज भी गांव में कुल का पुरोहित रक्षा बंधन के दिन रक्षा सूत्र बांध कर त्योहार मनाया जाता है।
भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित रक्षाबंधन का त्योहार इस बार 26 अगस्त 2018 रविवार को मनाया जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस त्योहार की शुरुआत सगे भाई-बहनों ने नहीं की थी। रक्षाबंधन कब शुरू हुआ, इसे लेकर कोई तारीख स्पष्ट नहीं है। वैसे, माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत सतयुग में हुई थी। इस त्योहार से संबंधित कई कथाएं पुराणों में मौजूद हैं।

ऱक्षाबन्धन का महत्व...
इस पर्व  का बहुत महत्त्व  हैं, जैसा  की आप जानते  है की ये त्यौहार भाई बहन  के बीच  मनाया जाता हैं।  इस दिन बहन भाई की कलाई  पर एक धागा  बांधती  है। जिसे रक्षासूत्र  कहा जाता है और भाई अपनी बहन को जीवन  भर उसकी रक्षा  करने  का बचन  देते है।  इस दिन भाई -  बहन दोनों एक साथ पूजा  करते है ।

रक्षाबन्धन कैसे मनाया जाता है 
ऱक्षाबन्धन मानाने का तरीका  बिलकुल सरल  है। इस दिन बहन जल्दी उठकर  स्नान  करती  है।  स्नान करने के बाद नए  कपडे  पहनती  है  और  जो राखी भाई के लिए खरीदी गई  है उसको पूजा की थाली  मे रख ले।
इसके बाद अपने भाई को सामने बैठाकर उसके तिलक  लगाए  और उसकी कलाई पर राखी बांधे।  फिर  आरती उतारे। आरती के बाद अपने भाई की पसंदीदा  मिठाई  उसे खिलाये  और अंत   में  भाई से उपहार  ले ।


रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है ..
रक्षाबंधन मनाने से सम्बंधित कई कथाये  है 
1) द्वापर युग में द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की कलाई में साड़ी के पल्लू का एक अंश बांधा था और वही उनकी कौरवों से लाज बचाने का माध्यम बना था। कहते हैं कि उसी घटना के प्रतीक स्वरूप तब से अब तक रक्षाबंधन मनाया जाता है। रक्षाबंधन का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी है। इसी दिन अमरनाथ में शिवलिंग अपना पूर्ण रूप धारण करते हैं तथा सफेद कबूतर के जोड़े के भी दर्शन होते हैं जो पुरातन काल से इसी गुफा में निवास करते हैं। कहते हैं कि जब भगवान शिव ने पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे तो वह दो कबूतर ही वहां पर थे जो की अमर कथा के प्रभाव से अमर हो गए और आज भी वह श्रावणी पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन के दिन वहां दर्शन देते हैं।
2) राखी की एक अन्य कथा है कि पांडवों को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा योगदान था। महाभारत युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि हे कान्हा, मैं कैसे सभी संकटों से पार पा सकता हूं? मुझे कोई उपाय बतलाएं। तब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधें। इससे उनकी विजय सुनिश्चित होगी। युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया और विजयी बने। यह घटना भी सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर ही घटित हुई मानी जाती है। तब से इस दिन पवित्र रक्षासूत्र बांधा जाता है। इसलिए सैनिकों को इसदिन राखी बांधी जाती है।
3) भविष्य पुराण में एक कथा है कि वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी। इस रक्षासूत्र ने देवराज की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। यह घटना भी सतयुग में हुई थी।
4) सिकंदर पूरे विश्व को फतह करने निकला और भारत आ पहुंचा। यहां उसका सामना भारतीय राजा पुरु से हुआ। राजा पुरु बहुत वीर और बलशाली राजा थे, उन्होंने युद्ध में सिकंदर को धूल चटा दी। इसी दौरान सिकंदर की पत्नी को भारतीय त्योहार रक्षाबंधन के बारे में पता चला। तब उन्होंने अपने पति सिकंदर की जान बख्शने के लिए राजा पुरु को राखी भेजी। पुरु आश्चर्य में पड़ गए, लेकिन राखी के धागों का सम्मान करते हुए उन्होंने युद्ध के दौरान जब सिकंदर पर वार करने के लिए अपना हाथ उठाया तो राखी देखकर ठिठक गए और बाद में बंदी बना लिए गए। दूसरी ओर बंदी बने पुरु की कलाई में राखी को देखकर सिकंदर ने भी अपना बड़ा दिल दिखाया और पुरु को उनका राज्य वापस कर दिया।
5) असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था. राजा बलि के आधिपत्‍य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्‍णु के पास मदद मांगने पहुंचे. भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी. पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया. अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें.
भगवान वामन ने ऐसा ही किया. इस तरह देवताओं की चिंता खत्‍म हो गई. वहीं भगवान राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्‍न हुए. उन्‍होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया. बलि की इच्‍छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा. भगवान विष्‍णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्‍मी चिंतित हो गए. अपने पति भगवान विष्‍णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्‍मी गरीब स्‍त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्‍हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी. बदले में भगवान विष्‍णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया. उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी और मान्‍यता है कि तभी से  रक्षाबंधन मनाया जाने लगा.
6) एक प्रसंग यह भी है कि मेवाड़ की रानी कर्णावती को यह पता चला कि उनके राज्य पर आक्रमण होने वाला है। उन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजी और याचना की कि वह उनके राज्य की रक्षा करें। मुगल सम्राट होने पर भी हुमायूं ने कर्णावती की भावनाओं का सम्मान किया और मेवाड़ पहुंच गए। इसके बाद उन्होंने कर्णावती की तरफ से बहादुरशाह के खिलाफ लड़ाई लड़ी।


जिन भाइयों की अपनी बहनें नहीं होती वह मुंहबोली बहनों से राखी बंधवाते हैं। इस दिन के लिए देशभर से सीमा पर तैनात जवानों को भी राखियां भेजी जाती हैं। ये कहानियां कितनी सही हैं इस बारे में तो कोई तर्क नहीं दिया जा सकता पर हां, यह बात जरूर है कि यह दिन भाई-बहन के प्यार में नवीनता लेकर आता है।

साल 2018 में ऱक्षाबन्धन..
मान्‍यताओं के अनुसार रक्षाबंधन के दिन अपराह्न यानी कि दोपहर में राखी बांधनी चाहिए. अगर अपराह्न का समय उपलब्‍ध न हो तो प्रदोष काल में राखी बांधना उचित रहता है. भद्र काल के दौरान राखी बांधना अशुभ माना जाता है. यहां पर हम आपको इस साल राखी बांधने के सही समय के बारे में बता रहे हैं.
राखी बांधने का समय: सुबह 5 बजकर 59 मिनट से शाम 5 बजकर 25 मिनट तक (26 अगस्‍त 2018)
अपराह्न मुहूर्त: दोपहर 01 बजकर 39 मिनट से शाम 4 बजकर 12 मिनट तक (26 अगस्‍त 2018)


पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: दोपहर 03 बजकर 16 मिनट (25 अगस्‍त 2018)
पूर्णिमा तिथि समाप्‍त: शाम 05 बजकर 25 मिनट (26 अगस्‍त 2018)

Saturday, August 18, 2018

बकरा ईद क्यों मानते है। /Bakra Eid Kyo Manate Hai/Why do believe in Bakra Eid?

हेलो  दोस्तों , ईद-उल-अज़हा (बकरा  ईद) आने  वाली  है और उम्मीद  करता  हूँ  की  आप  सभी  ने   क़ुरबानी  के  लिए  बकरा, दुम्मा , ऊट आदि  ले  लिए होंगे  या  पहले  से  ही  पाल  रखे होंगे   आज  हम  यहाँ  ईद-उल-अज़हा (बकरा  ईद) के बारे  में बात  करेंगे l

ईद क्या है?
दोस्तों सबसे पहले सवाल  यही बनता  है की ईद क्या है ?  दोस्तों ईद मुसलमानो  का  प्रमुख  त्यौहार  है जिसे  इस्लाम  धर्म  मानने वाला प्रत्येक  व्यक्ति  मनाता  है  और ईद को  एक  विशेष दर्जा  दिया  गया  है l  ईद एक साल में दो बार आती है जो  दो प्रकार  की होती  है  .....
1) ईद-उल-फितर या मीठी
2) ईद-उल-अज़हा या बकरा  ईद


सबसे पहले ईद-उल-फितर या मीठी ईद आती है जिसे पवित्र रमजान (उपवास )  के महीने  को पूरा  होने  के बाद मनाया  जाता  है l  ये त्यौहार बड़े  हर्ष- उल्लास के साथ  मनाया जाता है l  दोस्तों आज का हमारा  टॉपिक  ईद-उल-अज़हा (बकरा  ईद) के बारे में है तो आज हम ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद) के बारे में बात करेंगे l  ईद-उल-फितर (मीठी ईद) के बारे में जानने  के लिए हमारे  ईद-उल-फितर (मीठी ईद) का ब्लॉग  देखे या आप हमे  कमेंट  अथवा ईमेल  पर  भी  सवाल  कर सकते  है l

ईद-उल-अज़हा ( बकरा  ईद ) कब  मनाई जाती  है.....
दोस्तों ईद-उल-अज़हा (बकरा  ईद), ईद-उल-फितर (मीठी ईद)  के लगभग 70 दिन  बाद आती जिसे इस्लामिक कैलेंडर के 12वे  महीने धू-अल-हिज्जा की 10वी तारीक को मनाया जाता है।  ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद)  मे चाँद  दस दिन पहले दिखता है जबकि  ईद-उल-फितर (मीठी ईद) में चाँद एक दिन पहले दिखाई देता ।  इस्लाम धर्म में त्यौहार चाँद देखकर ही मनाये जाते है l बकरी ईद के महीने में सभी देशो के मुसलमान एकत्र होकर मक्का मदीना में (जो की सऊदी  अरब में है ) हज (धार्मिक यात्रा) करते हैl इसलिए इसे हज का मुबारक महीना भी कहा जाता है।   



ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद) क्या है.....
दोस्तों ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद) एक बालिदान की भावना का त्यौहार है इस  दिन बकरा अथवा किसी और जानवर (जो इस्लाम धर्म में मान्य है ) की क़ुरबानी (बलि) दी जाती हैl इस दिन अल्लाह इंसान के बहुत करीब होते जिन्हे क़ुरबानी देकर खुश किया जाता है अतः अल्लाह को खुश करने के लिए क़ुरबानी दी जाती हैl



क्या ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद) खुशियाँ मानाने का त्यौहार है....
दोस्तों बात ध्यान  देने  वाली है मेने  इंटरनेट  पर कई  सारे ब्लॉग देखे  जिनमे  बताया गया है की ईद-उल-अज़हा (बकरा  ईद) खुशियाँ मनाने का त्यौहार हैl दोस्तों में तो यही कहूंगा  की ये खुशियाँ मानाने का नहीं  बल्कि बलिदान की भावना का त्यौहार हैl  दोस्तों जब हम किसी जानवर को कुर्बानी के लिए रखते है तो वो  हमारे बहुत करीब हो जाता हमे उससे प्यार हो जाता इतना प्यार की वो हमे हमारा फैमली मेम्बर की तरह  लगने लगता है अब आप ही सोचिये हम अपने किसी प्रिय को कुर्बान करके खुशियाँ मना सकते है क्या ये अल्लाह के फरमान को पूरा करने के लिए किया जाता हैl अक्सर मेने क़ुरबानी के बाद लोगो को रोते देखा है इसलिए दोस्तों मेरी नज़र में इस त्यौहार को खुशियों का त्यौहार मानना गलत है और कहना भी l

ईद-उल-अज़हा को बकरा ईद क्यू  बोलते  है......
दोस्तों अक्सर ईद-उल-अज़हा को बकरा ईद बोलते हुए  देखा गया है लेकिन इस ईद में बकरा शब्द  से कोई लेना देना नहीं है सच तो ये है की अरबी में एक शब्द है बकर जिसका अर्थ  है बड़ा जानवर अतः जरुरी नहीं है की बकरा ईद पर बकरा की ही क़ुरबानी की जाये  इस्लाम धर्म  के अनुसार  कोई भी बड़ा जानवर जो जायज़ (मान्य) उसकी क़ुरबानी दी जा  सकती  हैl  बकर शब्द को ही बिगड़कर  लोगो ने  (हिंदुस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश  आदि )  ने इसका  नाम  बकरा ईद रख  लिया हैl 



ईद-उल-अज़हा (बकरा ईद) क्यू मनाई जाती.... 
ईद-उल-अज़हा (बकरा  ईद) या क़ुरबानी का नाम सुनकर  कुछ  लोगो के दिमाग  में सिर्फ एक सबाल हमेशा चलता रहता की आखिर क्यू एक बेज़ुबान जानबर को कुर्बान किया जाता और क्यू न ये सब आपके दिमाग में चले आखिर किसी को कुर्बान करना इतना आसान  थोड़ी हैl दरसल इस क़ुरबानी के पीछे एक बहुत ही रोंगटे  खड़े  करने वाली कहानी  है जिसे सुनकर हर किसी की सास कुछ पल के लिए थम  जाये और तब आप समझ सके की क़ुरबानी क्यों की जाती है l


दरसल बात हजरत इब्राहिम की है जो इस्लाम धर्म में पैग़म्बर हुआ करते थे उन्हें अल्लाह का करीबी माना जाता था वो अल्लाह के बहुत बिश्वास पात्र थे और अल्लाह उनकी परीक्षा लेना चाहता था l
एक बार हजरत इब्राहीम रात में सो रहे थेl तभी सोते वक्त उनको सपने में अल्लाह का हुक्म ईजाद हुआ की हजरत इब्राहिम आप अपने सबसे करीबी और सबसे प्यारी चीज हम पर कुर्बान कर दोl अगली सुबह हजरत इब्राहिम ने अपने घरवालों को बताया और मश्वरा  किया,की अल्लाह की हुमक है की वो अपनी सबसे प्यारी चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान कर देअब सब सोच में थे की आखिर सबसे प्यारी वो चीज क्या है,जिसे  हजरत इब्राहिम अल्लाह अल्लाह की राह में कुर्बान करेंगेतब हजरत इब्राहीम ने कुछ देर सोचने के  बाद फैसला लिया की वो अपने अज़ीज़  को कुर्बान करेंगे और वो अज़ीज़ उनका  बेटा हजरत इस्माइल थे जिनकी उम्र मात्र 10 साल थीl जो बाद  में पैगम्बर हुए लोगो  को जब इस बारे में पता चला तो वो भौचक्के रह गएl लेकिन हजरत इब्राहिम को तो अपना बेटा कुर्बान करना थाl आखिर अल्लाहा का जो हुक्म था और अल्लाह के हुक्म की नाफरमानी कैसे कर सकते थेl कुर्बानी का समय आ गयाl हजरत  इस्माइल को कुर्बानी के लिए तैयार किया गयाl लेकिन बेटे को कुर्बान करना इतना आसान नहीं थाl क़ुरबानी करते टाइम  बेटे के प्यार की भावना उनकी क़ुरबानी के आड़े न आ जाये इसलिए हजरत इब्राहीम ने अपनी आखो पर पट्टी बांध ली और बेटे को कुर्बान करने लगेl लेकिन अल्लाह तो हजरत इब्राहिम का इम्तहान  ले रहे थेl जैसे  ही हजरत इब्राहिम ने क़ुरबानी के लिए छुरी बेटे हजरत इस्माइल की गर्दन पर रखी तभी अल्लाह के फरिस्ते ने बहुत तेजी से हजरत इस्माइल को हटाकर उनकी जगह दुम्बा ( बकरे की तरह जो सऊदी में पाया जाता है ) को रख दिया और हज़रत इब्राहिम से कहा की आपकी क़ुरबानी अल्लाह ने कबूल की वो क़ुरबानी पहली क़ुरबानी थी और तभी से ये क़ुरबानी का त्यौहार ईद-उल-अज़हा (बकरा  ईद) मनाया जाने लगा हमारे पूरे संसार में ईद-उल-अज़हा (बकरा  ईद) मनाया जाता हैl ज्यादातर लोग  बकरे की ही क़ुरबानी देते है और ये क़ुरबानी सभी पर जायज हैं  जिसके पास सब मिलाकर 13000 रूपये  का माल है 
एक बकरे को बड़े प्यार से पाला जाता है और फिर उसे कुर्बान किया जाता जिससे  बलिदान की भावना बढ़ती है इस तरह क़ुरबानी की प्रथा चली आ रही है 

बकरा ईद किस प्रकार मनाई जाती  है ...
दोस्तों जिस दिन ईद मनाई जाती है उस दिन सभी ￰मुस्लिम लोग सुबह जल्दी उठते और सबसे पहले जिस जानवर की कुर्वानी देनी होती है उसको नहलाते और खाने के लिए तरह - तरह की चीजे देते है उसके  बाद सभी लोग तैयार होकर ईद की नमाज़ पढ़ने चले जाते है मस्जिद में सभी के लिए दुआए होतीं हैं और दुआ की जाती है की अल्लाह सभी की क़ुरबानी को कबूल करे 

दोस्तो मस्जिद से आने के बाद क़ुरबानी के जानवर को जिबह (गर्दन को धीरे-धीरे काटना )  किया जाता है जिबह करना  इस्लाम धर्म में सुन्नत ( अच्छा )  माना जाता हैं और कहा जाता है की जिबह करने से शरीर का सारा खून बहार निकल जाता है जिससे किटाणु खून के साथ बाहर आ जाते है और मीट खाने से किसी तरह की बीमारी होने का खतरा नहीं रहता है क़ुरबानी के गोस्त के 3 हिस्से  किये  जाते है । एक हिस्सा  गरीबो  में बांटा जाता हैं दूसरा हिस्सा पडोसी और रिस्तेदारो में और तीसरा हिस्सा अपने घर के लिए होता  है 
दोस्तों बकरी ईद पर ये ध्यान रखा  जाता है की कोई भी पडोसी या रिस्तेदार  या गरीब  भूखा ना रहे इसके बाद सभी एक दूसरे  के घर मिलने जाते हैं इस तरह ईद का ये त्यौहार सभी मिल-जुल कर  मानते  है 

ईद के दिन हम किन-किन बातो  का ध्यान रखे ......
1) जिस जानवर की क़ुरबानी करे उसका खून नाले में न बहाये  
2) क़ुरबानी के गोस्त को तीन  हिस्सों में करे, जैसे ऊपर  बताया गया है 
3) याद  रखे जिस जानवर की आप कुर्वानी दे रहे हो वो बीमार न हो अथवा उसके कही चोट न लगी  हो 
4) अपने आस  पास के गरीब लोगो का भी ख्याल  रखे 
5) किसी खुली जगह ( सड़क , चौराहे , पार्क ) में क़ुरबानी न करे 
6) क़ुरबानी के अनावश्यक  हिस्सों को नाले अथवा खुली जगह में न डाले  कही एक गड्डा खोदकर दबा  दे 
7) क़ुरबानी करते टाइम स्वछता का विशेष ख्याल रखे
8)  क़ुरबानी करते टाइम गैरमुस्लिम  भाइयो  भी ख्याल रखे ऐसा  बिलकुल न करे जिससे उन्हें कोई तकलीफ  हो 

इस प्रकार इस्लाम में बकरी ईद का त्यौहार मानते है ये त्यौहार प्यार, बलिदान और शांति  का प्रतीक  है लेकन आज के टाइम में लोग दिखावा  ज्यादा  करते है  आप सभी लोगो से यही सम्बेदना  है की दिखवा  बिलकुल न करे और प्यार शांति के साथ मिल-जुल कर त्यौहार मनाएं 


ईद उल जुहा  का चाँद हुआ है यारो 
खुदा के करीब आने का आगाज  हुआ है यारो 
कर लो तैयारी  तुम  कुर्बान ऐ बकर की 
पैगामे ऐ खुदा से आया है ये यारो 

गोस्त ऐ क़ुरबानी तुम बाटना  गरीबो में यारो 
ना रहे कोई भूखा बस्ती  में यारो 
देख रहा होगा खुदा भी मंजर  ऐ क़ुर्बा  का 
न करना दिखवा ऐ क़ुरबानी का यारो 

प्यारी है क़ुरबानी अल्लाह को इसमें कोई सक  नहीं 
दी थी पहली क़ुरबानी हजरत इब्राहिम ने कोई और नहीं

पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद..

मुझे उम्मीद  है की ये आर्टिकल आपको पसंद आया होगा  इस आर्टिकल से सम्बंधित किसी भी सबाल अथवा सुझाव के लिए आप हमे कमेंट अथवा मेल कर सकते है

Monday, August 13, 2018

जशन-ए-आज़ादी ...

जी हां, आज़ादी का वो जश्न जिसे "जश्न-ऐ-आज़ादी" कहे या "स्वतंत्रा दिवस" कहे या अपने शब्दों में ये भी कह सकते है की हमे इस दिन जीने के वो सारे मौलिक अधिकार मिल गए जो अंग्रजो के पैरो तले दबे हुए थे। पुरे देश में इस समय जश्न का माहौल बना हुआ है।  पूरा भारत अपनी आज़ादी का 72वाँ स्वतन्त्रा दिवस मानाने जा रहा है। जी हाँ 15 अगस्त 2018 को भारत के स्वतंत्रा के 71 साल पुरे होंगे  और पूरा देश 72वाँ स्वतन्त्रा दिवस मनाएगा। 15 अगस्त के दिन पूरे देश में एक अलग ही माहौल रहता है , बच्चो से लेकर बुजर्गो तक सब आज़ादी के जश्न में चूर रहते है। बच्चे ज्यादातर पतंग उड़ाकर जश्न मनाते है।  स्कूल, कॉलेज, दफ्तर आदि जगहों पर तिरंगा फ़रया जाता है और राष्ट्रगान होता है। इस दिन हमारे देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर ध्वज फहराते है और महापुरषो को श्रंद्धाली देते है।  जिनका इस देश की आज़ादी में बहुत बड़ा योगदान रहा है।  स्कूल, कॉलेज और दफ्तरों में भी महापुरषो को श्रंद्धाली दी जाती है और देश के लिए दिए गए उनके बलिदान को याद किया जाता है और जगह - जगह सभाओ का भी आयोजन किया जाता है।

चलो फिर से खुद को जगाते है,
अनुसाशन का डंडा फिर घूमाते है,
सुनहरा रंग है गणतंत्र स्वतंत्रता का,
शहीदों के लहू से ऐसे शहीदों को हम सब सर झुकाते है…

जी हाँ, ऐसे शहीदो को हम सब सर झुकाते है। ....इस दिन का एक अलग ही महत्ब होता है।  इस दिन के आते ही शहीदो की शान में सर खुद ही झुक जाता है और उनके दिए गए इस बलिदान को याद करके हमे भी प्रेणना मिलती है।

आजादी के वो दिन .....
आज़ादी के वो दिन जिनको याद करके हमे भी गर्व महसूस होता है।  1940 के दशक में आज़ादी का बिगुल बजा था और आखिर में 15 अगस्त 1947 को हमे अंग्रेजों की गुलामी से आज़ादी मिल गई। लगभग 200 साल तक हम अंग्रजो के अत्याचार और गुलामी सहते रहे।  ब्रिटिश सरकार ने हम भारतीयों पर बहुत जुल्म किए।  लेकिन उसी दौर में भारत ने ऐसे वीर सपूतो को जन्म दिया जिन्होंने ब्रिटिश सरकार से आज़ादी लेने की कसम खा ली।  ना जाने कितने ही वीरो ने सीने पर अंग्रेजो की गोलिया  खाई।  ना जाने कितने ही वीर सपूत इस धरती के लिए शहीद हो गए।  उनमे भारत के कुछ ऐसे सपूत थे जिनका योगदान हमेशा याद किया जाता है और किया जाता रहेगा।  इनमे कुछ नाम सरदार भल्लम भाई पटेल , भगत सिंह, सुभाष चंद्र बॉस, चंद्र शेखर आज़ाद और महात्मा गाँधी इत्यादि।
यूँ तो भारत की आज़ादी का बिगुल 1857 की क्रांति से ही बज चूका था।  इतिहासकारो का मानना है की 1857 की क्रांति का  भारत की आज़ादी में बहुत बड़ा योगदान है। जिसे झुटलाया नहीं जा सकता। इसके बाद धीरे-धीरे क्रांति का बिगुल और भी तेज़ होता गया और इसके बाद 1885 में इंडियन कांग्रेस की स्थापना की गई।  जिसमे कांग्रेस के दिग्गज नेता सम्मलित हुए।  चम्पारण, सत्यग्रह, दांडी मार्च, भारत छोडो आंदोलन हुए।
जिसने ब्रिटिश सरकार की नींव हिला कर रख दी।  स्वतंत्रा के इस आंदोलन में भारत के  हर जाति और धर्म के लगो ने हिस्सा लिया और अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
महात्मा गांधी के साथ इन आंदोलन की जिम्मेदारी जिन लोगो  ने उठाई  लाला लाजपत राय, बल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्णा गोखले, अरविंदो घोष, नेता जी सुभाष चंद्र बॉस, भगत सिंह, चंद्र शेखर आज़ाद इत्यादि थे।  इसी दौरान सुभाष चंद्र बॉस ने "आज़ाद हिन्द फौज " की स्थापना की।
आखिर इन  लोगो के संघर्ष से ब्रिटिश सरकार ने अपने घुटने टेक दिए  और 15 अगस्त 1947 से हमारा देश आज़ाद हो गया। भारत के लिए 15 अगस्त 1947 का दिन एक पुनर्जन्म था।  इस दिन पहली बार भारत के लालकिले पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने भारत का तिरंगा फहराया और लोगो को सम्बोधित किया।
इस तरह ये दिन भारत में बड़े हर्ष -उल्लास के साथ मनाया जाता है।  सभी धर्म और जाति के लोग एक साथ तिरंगा फहराते है।  हम आज़ाद भारत के आज़ाद नागरिक है।  इसलिए हमे सभी को बुरे लोगो से अपने देश की रक्षा करनी चाहिए। ....

सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्ता हमारा। ..
हिंदुस्ता  हमारा। ..

धन्यबाद।

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